दिल और वाणी दोनों थे बाजपेयी जी के पास। जब बोलते थे दोनों का लय (विलय )हो जाता था।गद्य को पद्य में कहना यथार्थ को कविता में कहना और भाव और लय को बनाये रखना अतिरिक्त कौशल की मांग करता है। वाजपेयीजी के पास दोनों थे दिल और वाणी दोनों ही निष्पाप थे। भारत के इस हीरे को विजय घाट पर स्थान मिलना उनकी कद काठी के ही अनुरूप है। यदि इस वक्त भारत में कांग्रेस की सरकार होती तो नरसिम्हा राव की तरह उन्हें दिल्ली से बाहर कहीं ग्वालियर में ही स्थान मिलता। कांग्रेस राज में पूरे राजघाट पर नेहरुवंशियों का कब्ज़ा रहा। इस पावन भूमि से माननीय चन्द्रशेखरजी ,गुलज़ारीलाल नंदा ,लालबहादुर शास्त्री जी ,इंद्रकुमार गुजराल ,मुरारजी भाई देसाई , चरण सिंह जी ,विश्वनाथ प्रताप सिंह आदि को दूर ही रखा गया। हीरे की क़द्र कोई जोहरी ही जानता है। उनके आवास पर जाकर उन्हें भारतरत्न का सम्मान दिया गया वर्तमान राजनीतिक प्रबंध ने। भारत धर्मी समाज उनका आभारी है। वाजपेयी जी वह सख्शियत थे जो सबको प्यारे थे। सबका सम्मान करते थे। सबको साथ लेकर चलते थे। वह भारत को मूलतया : एक हिन्दू राष्ट्र ही मानते थे। मन वाणी कर्म से वह ता