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कर्म प्रधान विश्व करि राखा ,जो जस करहि सो तस ही फल चाखा

कर्म प्रधान विश्व करि राखा ,जो जस करहि सो तस ही  फल चाखा 

कर्म का संस्कृत में शाब्दिक अर्थ है हमारे द्वारा किये गए काम। 

The Sanskrit word Karma means "actions" and refers to fundamental eternal( Hindu) principle that one's moral actions have unavoidable and automatic effects on one's fortunes in this life and here after i.e conditions of re -birth in the next .

कार्मिक सिद्धांत मूल सनातन सिद्धांत रहा है भारत धर्मी समाज का  जिसके अनुसार हमारे द्वारा  किये अच्छे बुरे कर्म अपना अच्छा या बुरा प्रभाव ज़रूर छोड़ते हैं। ये कर्म हमारे भाग्य का निर्धारण न सिर्फ इस जन्म में बल्कि हमारे शरीर छोड़ने के बाद आगे मिलने वाले जन्मों में भी करते हैं। इनके असर से बचा नहीं जा सकता। 

कर्म किसी भाग्य या हाथ की लकीरों का नाम नहीं है हमारे ही पूर्व जन्मों का सहज परिणाम है जो हमें आगे पीछे मिलता रहता है.इसीलिए कहा गया है :

कर्म गति टारै  नाहिं  टरै ,

मुनि वशिष्ठ से पंडित ग्यानी , 

 सिधि(सोच ) के लगन धरी ।

सीता हरन मरन दसरथ को, बन में बिपति परी॥1॥

कहँ वह फन्द कहाँ वह पारिधि, कहँ वह मिरग चरी।

कोटि गाय नित पुन्य करत नृग, गिरगिट-जोन परि॥2॥

पाण्डव जिनके आप सारथी, तिन पर बिपति परी।

कहत कबीर सुनो भै साधो, होनी  होके रही॥3॥

मनुष्य को अलबत्ता कर्म करने की पूर्ण स्वतंत्रता है वह यह करे या वह करे या दोनों ही न करे। 

एक बार मोहम्मद साहब ने अपने नवासे अली साहब से पूछा :अली क्या सब कुछ खुदा के हाथ में ही है हमारे हाथ में कुछ नहीं है। अली बोले वक्त आने पर बतला दूंगा। मोहम्मद साहब को बे -कली लगी थी बोले न अभी बता। अली बोले अच्छा अपना एक पैर उठा ले दूसरे पर खड़ा रह। मोहम्मद साहब एक पैर पर खड़े हो गए थोड़ी देर बाद अली बोले अब ऐसा कर दूसरा पैर भी उठा ले। अली बोले ये तो मैं कर नहीं सकता। ये कैसे करूँ।

बोले अली बस यही तेरी स्वतंत्रता है तू बायां पैर उठा ले या दायां।

You can control your actions  not their results .

Karma refers to the totality of our actions and their reactions in this and previous lives ,all of which determines our future .The conquest of karma lies in intelligent and kind action and response .

आप अपने कर्मों से भाग नहीं सकते । करतम सो भोगतम  .जैसा करोगे वैसा भरोगे। जो बोवेगे वही काटोगे।

तीन प्रकार के कर्म बतलाये गए हैं :

संचित कर्म ,क्रियमाण कर्म और आगामी कर्म।

संचित कर्म हमारे अनंत कोटि पूर्व जन्मों के फलों का जमा जोड़ हैं। इनका परिणाम हमें भुगतना ही पडेगा आगे या पीछे। कब इसका कोई निश्चय नहीं।

कुछ कर्मों का फल आपके जीते जी मिल जाता है वह क्रियमाण कर्म हैं जिन्हें करने की आपको स्वतंत्रता है। जिन कर्मों का फल इस जन्म में नहीं मिल पाता वो फास्ट फॉरवर्ड हो जाते हैं यही आगामी कर्म हैं।

जब हम पैदा होते हैं तो संचित कर्मों के फलों का एक अंश लेकर पैदा होते हैं।इसे ही प्रारब्ध कह देते हैं।

 ये फल तो हमें भोगने ही भोगने पड़ेंगे।अलबत्ता अपना निज आत्मिक स्वरूप जानने बूझने के बाद इनका दंश हम उतना मेहसूस नहीं करेंगे। वर्तमान के अच्छे क्रियमाण कर्म हमारे संचित कर्मों का दंश कम कर सकते हैं।

वशिष्ठ रामायण (अखंड रामायण या योग  वाशिष्ठ  )के अनुसार ये दो जंगली मेढ़ों के बीच की लड़ाई है। हमारे कल किये गए पुरुषार्थ (कर्म या एक्शन्स ,एफ्फर्ट्स )और आज किये जा रहे क्रियमाण कर्मों (वर्तमान कर्म फलों  )के बीच रस्सा कसी है। वर्तमान का पुरुषार्थ अतीत के पुरुषार्थ को पटकी भी दे सकता है।उससे परास्त भी हो सकता है।  इसलिए भाग्य नाम की कोई शह नहीं है। हमारा पुरुषार्थ हमारा कर्म ही सब कुछ है।

कर्म किये जा फल की चिंता मत कर बंदे।

https://www.youtube.com/watch?v=sO-L7r5v6Sg

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